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धर्म और व्यक्तित्व !!

Karma and Dharma

धर्म विना नैतिकता के जीवंत नहीं हो सकता. कोई धर्म जो भौतिक सामाजिक और आत्मिक अराजकता फैलता है , ना  व्यक्ति के लिए हितकर है और ना समाज के लिए .धर्म जो देता है एक पवित्र आत्मा का पूर्ण पुरुष वही  पूर्ण धर्म है। सभी धर्मों की यही एक मात्र कसौटी है ।

धर्मं हमारा चुनाव नहीं है, अतः धर्म बदलना ईश्वर का अपमान है .जो अपने धर्म को नहीं जानता केवल वही , दूसरे धर्मं की आलोचना करता है . जितने लोग दूसरे धर्म की आलोचना करते है बस वही धर्मांध हैं .यह पहचान है ऐसे लोग सभी धर्मों में है ऐ लोग नकली हैं और इनका धर्म भी नकली समझो .

सभी धर्म सदगुणों का प्रचार करते हैं .यदि किसी धर्मं की कोई बात आपको अच्छी लगती है तो आप स्वतंत्र हैं उसे अपनाने के लिए और यदि अपने धर्म में कोई बात अनुकूल नही लगाती तो उसको वहीं बाईज्जत रहने दो. अब दुनिया एक गावं हो गई है और एक दुनिया एक धर्म की बात है ,मानव-धर्म , नैतिक-धर्म और असली बात भी यही है ।

धर्मं के सम्बन्ध में लड़ना छिपे रूप से सभ्य पशुता और धार्मिक उन्माद है .सभी धर्म हमे प्रेम दया भाईचारा सिखाते हैं कोई धर्म निरपराध की हत्या करना नही सिखाता . मेरी समझ से धर्म अपराध से बचाता है . क्या कोई भी धर्म अपराध करने को कहता है ? जिस भी धर्म में धर्मान्धों और नकली धर्म मानने वालों का प्रभुत्व बढ़ रहा हो  उस धर्म के नेताओं और धर्म वालों को सावधान हो जाना चाहिए अन्यथा उनका धर्म खतरे में है ऐसा मन लेना चाहिए .
इतिहास यही कहता है...

-डॉ. पाठक की कलम से .

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